Wednesday, June 20, 2012

कुछ हकीकते

मै कुछ हकीकते बयाँ करना चाहता हु !
हो सकता है की तुम जानते हो इसे लेकिन फिर भी,
मै आज भोंकना चाहता हु !

पूरब, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण ऐसा कुछ है ही नहीं !
असल में कोई दिशा ही नहीं है !
सूरज न तो पूरब से निकलता है और ना ही पश्चिम में अस्त होता है !
क्यूंकि सूरज कही है ही नहीं !
जिसे हम सूरज कहते है वो असल में स्टोक मार्केट के सांड की आँखों से रोजाना निकलता एक आग का गोला है !
जोकि, पार्लमेंट के चक्कर काटता रहता है !
उसीके चक्कर के क्रम से बनते है दिन-रात !
असल में कोई दिन-रात है ही नहीं !

तुम और तुम्हारी सारी पुश्ते जिस गाँव में पैदा हुई है
असल में वो गाँव तुम्हारा है ही नहीं !
न तो वो नदी तुम्हारी है जिसमे तुम नहाते नहाते सुसु किया करते थे !
यूँ समझ लो की गाँव नाम की कोई जगह कही है ही नहीं !
मेरा गाँव-मेरा देश एक छलावा है !
दरअसल तुम जहाँ बसे हो वो एक कालोनी है जिसका मालिक कोई और है !
तुम्हे शायद पता न हो लेकिन हजारो साल पहले प्राचीन भाषा में लिखे दस्तावेज है मालिक के पास !
जोकि इन दिनों अंग्रेजी में ट्रांसलेट हो रहे है !

तुम बेवकूफ रात को दूर आसमान में चाँद को देखते हुए सपने बुनते हो

जबकि न तो वो चाँद तुम्हारा है न ही बुने हुए सपने तुम्हारे है !
असल में तुम कुछ देख ही नहीं सकते क्यूंकि तुम्हारे पास नजर है ही नहीं !
तुम जिसे आँख कहते हो वो असलियत में एक सेन्सर है
जिसकी लगाम धरती पर रहनेवाले चंद चांदो के हाथ में है !
वो तुम्हे सपने दिखाते है !
वो तुम्हारे सपने तोड़ते है !
आंसू बहाकर तुम्हे दिलासा भी देते है !
और वक़त वक़त पर तुम्हारा सेन्सर नोंचते रहते है !

और एक आखरी सच !
यह दुनिया एक बड़ा सा कारखाना है
और तुम हो एक पैदाइशी मशीन !
तुम महज एक जरिया हो दिल्ही के लोकतंत्र का,
कोई ब्रिटिश हुकूमत का ,
या फिर कोई टाटा-बिरला-अम्बानी-अदानी की दौलत का !
तुम जिसे जीवन कहते हो वो दरअसल तुम्हारे काम करने की एक लम्बी शिफ्ट है !
हो सकता है की तुम यह सब जानते हो शायद लेकिन फिर भी,
आज मै यूँही भोकना चाहता हु !
मै कुछ हकीकते बयाँ करना चाहता हु !

- मेहुल मकवाना, १९ जून, अहमदाबाद

5 comments :

  1. may i share my concern making inventory out of each stanza of your poem ?

    i want to show the reader you can make your own inventory and yet reach to the same poetic truth : it is the capitalist exploiter who dispossesses you of every thing - including life and pleasures derivable from it.



    पूरब, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण ऐसा कुछ है ही नहीं !
    असल में कोई दिशा ही नहीं है !

    क्यूंकि सूरज कही है ही नहीं !

    असल में कोई दिन-रात है ही नहीं !

    असल में वो गाँव तुम्हारा है ही नहीं !

    न तो वो नदी तुम्हारी है जिसमे तुम नहाते नहाते सुसु किया करते थे !

    यूँ समझ लो की गाँव नाम की कोई जगह कही है ही नहीं !

    जबकि न तो वो चाँद तुम्हारा है न ही बुने हुए सपने तुम्हारे है !

    असल में तुम कुछ देख ही नहीं सकते क्यूंकि तुम्हारे पास नजर है ही नहीं !


    और एक आखरी सच !

    तुम जिसे जीवन कहते हो वो दरअसल तुम्हारे काम करने की एक लम्बी शिफ्ट है !

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