लाल किला मुझे अच्छा नहीं लगता,
या यु समझो की मुझे लगभग कोई भी किला अच्छा नहीं लगता !
क्यूंकि आख़िरकार हर एक किले की बनावट तो होती है लाल ही !
मै जब भी किसी किले के पास जाता हु !
तब एक अजीब सी ख़ामोशी..
एक अनचाही पीड़ा घेर लेती है !
न जाने कितनी बेशर्म ऐयाशियों
और कितने बेरहम हुकुमो से बना,
किला शब्द ही बड़ा कमीना लगता है मुझे !
एक तरफ किले से जुडी होती है चंद लोगो की किलकारिया,
वही दूजी तरफ किले से बनती है सेंकडो किल..
फिर एक एक करके उसकी हर एक किल,
चुभती जाती है जेहन में !
रंगीन दीवारों मे दबी,
किले की नींव में चुनी हुई ,
अपनी पुरखो की हड्डिया दिखने लगती है साफ़ साफ़ !
नींव से आँख ऊपर उठते ही गुम्बज्ज उडाता है मेरी खिल्ली,
फिर से अचानक में खुद को किसी तोप के मुंह से बंधा पाता हु !
चाहे दिल्ही का हो या अहमदाबाद का कोई भी किला मुझे अच्छा नहीं लगता !
जानता हु की अब वो राजा-महाराजाओ का जमाना नहीं है,
लेकिन फिर भी किसी भी किले का कंकड़ गिरा नहीं है !
और इसीलिए...
.....मुझे लाल किला अच्छा नहीं लगता !
सख्त नफरत है मुझे हर एक किले से !
- मेहुल मकवाना, २३ मार्च, २०१२, अहमदाबाद
या यु समझो की मुझे लगभग कोई भी किला अच्छा नहीं लगता !
क्यूंकि आख़िरकार हर एक किले की बनावट तो होती है लाल ही !
मै जब भी किसी किले के पास जाता हु !
तब एक अजीब सी ख़ामोशी..
एक अनचाही पीड़ा घेर लेती है !
न जाने कितनी बेशर्म ऐयाशियों
और कितने बेरहम हुकुमो से बना,
किला शब्द ही बड़ा कमीना लगता है मुझे !
एक तरफ किले से जुडी होती है चंद लोगो की किलकारिया,
वही दूजी तरफ किले से बनती है सेंकडो किल..
फिर एक एक करके उसकी हर एक किल,
चुभती जाती है जेहन में !
रंगीन दीवारों मे दबी,
किले की नींव में चुनी हुई ,
अपनी पुरखो की हड्डिया दिखने लगती है साफ़ साफ़ !
नींव से आँख ऊपर उठते ही गुम्बज्ज उडाता है मेरी खिल्ली,
फिर से अचानक में खुद को किसी तोप के मुंह से बंधा पाता हु !
चाहे दिल्ही का हो या अहमदाबाद का कोई भी किला मुझे अच्छा नहीं लगता !
जानता हु की अब वो राजा-महाराजाओ का जमाना नहीं है,
लेकिन फिर भी किसी भी किले का कंकड़ गिरा नहीं है !
और इसीलिए...
.....मुझे लाल किला अच्छा नहीं लगता !
सख्त नफरत है मुझे हर एक किले से !
- मेहुल मकवाना, २३ मार्च, २०१२, अहमदाबाद
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