यु तो पहले भी इस दौर से गुजर चूका हु मै,
डर है की अबके कोई नया मकाम न होगा !
खूब जशन मनाएंगे इक दूजे को गले लगा के,
न होगा अल्लाह तेरे संग, मेरे साथ राम न होगा !
उम्र हुयी उनके लबो से अपना नाम सुने यारो,
इस जहाँ में और कोई मुजसा न बदनाम होगा !
उम्र ढली पर सीख न पाए कोई हुन्नर जीने का,
शायद इस जहाँ में अब अपना कोई दाम न होगा !
-मेहुल मकवाना , अहमदाबाद, ८ अगस्त २०१०
खूब जशन मनाएंगे इक दूजे को गले लगा के,
ReplyDeleteन होगा अल्लाह तेरे संग, मेरे साथ राम न होगा !
Nice one Mehul! Liked it!
Hi Mehulbhai, nice poem.
ReplyDeleteउम्र हुयी उनके लबो से अपना नाम सुने यारो,
इस जहाँ में और कोई मुजसा न बदनाम होगा !
Magnificent piece!
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