कत्ल और कविता के बिच पल भर का फांसला होता है
हत्या के लिए नहीं उठ पाते हाथ अक्सर कविता लिख लेते हैं !
हलक में जब गालियां घुट घुट कर मर जाती हैं तो वे गीत बन जाती है
दरअसल जब जब मेरे भीतर कविता और कत्ल के बिच लड़ाई होती हैं
पता नहीं क्यों हर बार कविता ही जीत जाती हैं
हाँ मैं कुबूल करता हूँ मैंने मनसूबे रखे हैं
मुट्ठियां भींच कर पसीने से तर कर रख है गुस्सा भी
कई बार किया हैं महसूस की लब्ज़ बेकार हैं अब तो बस....
लेकीन हरबार कत्ल की साजिश दम तोड़ देती हैं
हरबार जित जाते हैं कविता के संस्कार
वह की जिसमे कहा जाता है की विचार मृत्यहिन हैं
सोच चाहे की क्तिनी भी बुरी क्यों न हो वो
बुरी से बुरी भी क्यों न हो पर कत्ल करना उससे भी बुरा है
वह की जो कहते रहते है आस अमर होती हैं
हर रात बनी कत्ल की साजिश अखबार के पन्नो पर आके रुक जाती हैं
जिस पर लिखा होता है
मेरा देश बदल रहा हैं
मेरा देश बदल रहा हैं
आगे बढ़ रहा हैं !
- मेहुल मंगुबहन, अहमदाबाद
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