सुरंगे खुद चुकी है !
गाँव से गाँव के बिच,
शहर से शहर के बिच,
उडल दी है हवाओ ने सारी मिटटी !
हो चुकी है सबकी सिनख्त !
हर एक कब्र अब कब्र से जुड़ चुकी है,
हर गाँव से हर शहर तक,
हर शहर से हर मुल्क तक,
हर मुल्क से हर जहाँ तक !
अब लाशें कब्र से बाहर आने को तैयार है
अब लाशे सबकुछ फूंकने को बेताब है
मशीनों से काटे दिए गए मजदूरों की लाशे,
फालतू जंग में शहीद हुए सिपहिओ की लाशें,
दिन दहाड़े जलाए गए
और एक पर एक दफनाये गए दलितों की लाशें,
बन के पत्तो की तरह झड चुके आदिवासिओ की लाशे !
जानी पहचानी और अनजानी भी,
सब लाशे बाहर आने को तैयार है !
लाशें मिल चुकी है एकदूजे से,
लाशें आ गई है नतीजे पे,
अब धरती चीरकर लाशें फूटेगी
फुट पड़ेगी बम बनकर लाशे नेताओ पर,
फुट पड़ेगी खू के हर विक्रेताओ पर,
जिस की नीव में होगा लहू का दाग
जिसकी भी बुनियाद होगा मुफ्त पसीना
ऐसे हर शख्स पर, हर मकाँ पर टूट पड़ेगी लाशें !
लाशें अब बारूद बनकर बरसेगी,
लाशें अब हिसाब को गर्जेगी,
लाशें मागेगी अपने हिस्से की जमीं
लाशें मागेगी आसमान अपने हिस्से का !
आखरी वक़त मुह में रखे गए पुराने सिक्के का मोल भी लाशें मागेगी !
लाशो से कोई बच न पायेगा,
लाशो से कोई छिप न पायेगा,
सुरंगे खुद चुकी है चारो तरफ से,
बिना कोई वारंट, बिना कोई पर्ची
लाशें अब कहीं से भी फुट पड़ेगी !
लाशे निकल चुकी है हर कब्रिस्ता से
हर एक मुर्दाघर से चल पड़ी है लाशें,
हर आँगन पर गुहार लगाएगी,
हर दरवाजा खटखटाएगी,
राजमहल को आग लगाएगी,
सारे सेठो के सिर मुंडवाएगी
कदम कदम आगे बढ़ रही लाशें अब वापिस कब्र में नहीं जायेगी,
गर जायेगी तो न जाने कितनो की लाशें लेकर जायेगी !
- मेहुल मकवाना, 22 जनवरी 2013, वेजलपुर
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