Monday, February 4, 2013

कोमल ग़ज़ल



वो इस तरह फूलो में बहार ढूंढते है, 
मानो अखबार में खास इश्तिहार ढूंढते है !

जिस पर तुम्हारे ख्याल का साया न हो, 
इस जिन्दगी में हम ऐसा करार ढूंढते है !

न ग़ज़ल के हो मोहताज, न मय के साथी,
हम अपने आप में वो खुमार ढूंढते है !

सारा शहर सन्नाटे से भरा पड़ा है यहाँ ,
और एक हम है की पुकार ढूंढते है !

हर एक चीज मिल जाती है दुकानों में,
सिवा एक जिसे हम बेसुमार ढूंढते है ! 

पलक झपकने जितना भी शक हो न कभी,
हम तेरी आँखों में वो इख्तियार ढूंढते है !

हर हाथ मे पत्थर हेरानी की बात नहीं,
लोग यहाँ पत्थरो मे परवरदिगार ढूंढते है !

- मेहुल मकवाना,  22 जनवरी 2013, वेजलपुर 

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