Monday, September 27, 2010

आते-जाते अब भी कई आँखें कतराती है


सच कहू तो जीते जी वो क़यामत ढाती है,
इश्क जब साबित करने की नौबत आती है !

हम ही शोरगुल में सुन नहीं पाते है शायद,
जिन्दगी जो गीत अक्सर गुनगुनाती है !

इश्क के दोहरे दर्द की कोई बात न करता है
रूह से निकली याद जिस्म तक फ़ैल जाती है !

कई दिनों से शहर में दंगे नहीं हुए है लेकिन,
आते-जाते अब भी कई आँखें कतराती है !

नगर ढिंढोरा पिटो , चाहे लगाओ नारे हजार,
अपनी आधी जनता आज भी भूखी प्यासी है !

-मेहुल मकवाना ,२७ सितम्बर २०१०,अहमदाबाद

4 comments :

  1. बहुत ही बढिया...

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  2. वह वह कविजी,
    भाषा और विषय की गहनता में काफी तरक्की है.

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  3. आते-जाते अब भी कई आँखें कतराती है !
    very nice...

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  4. कई दिनों से शहर में दंगे नहीं हुए है लेकिन,
    आते-जाते अब भी कई आँखें कतराती है !

    नगर ढिंढोरा पिटो , चाहे लगाओ नारे हजार,
    अपनी आधी जनता आज भी भूखी प्यासी है !

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