माता कुंता जानती थी सत्य
पता था की गर मिल बाँट के खाने को न कहा गया
तो मुझे पाने के लिए पांचो एकदूजे से भीड़ जाएंगे यकीकन
आखिरकार में उस दौर की सबसे सुंदर स्त्री जो थी !
वो जानती थी
न जाने कितने समय से राजा-महाराजा-योद्धा
कल्पनाओ में मुझसे संभोग करने लगे थे !
मेरी एक झलक को तकने लगे थे !
उन्हें पता था मेरे स्वयंवर में उमड़े वीर्य सैलाब का
पांडव-कौरव तो क्या प्रत्येक पुरुष बेताब था मुझे भोगने को
संसार के सबसे बड़े खजाने का मालिक बनने को !
वरना पानी में देख सर पर घूमती मछली की आँख फोड़ना,
कभी सोची भी है ऐसी कठोर परीक्षा किसी ने ?
अर्जुन तो क्या गुरु द्रोण भी यह न कर पाते !
कुंता जानती थी सत्य
गर मिल बाँट के खाने को न कहा गया तो
मेरे लिए पांचो के बीच फिर से एक स्वयंवर होगा
और फिर वे पांच से चार-तीन-दो-एक हो जायेंगे !
वैसे होना तो यही सही था पर कुंता से एक अलग सत्य
बतौर पुरुष महाधूर्त युधिस्ठिर से नम्र नकुल तक सभी जानते थे !
पता था की भीम की मदद के बिना वो धनुष नहीं उठा पायेगा !
होनहार जुआरी युधिस्ठिर के बिना
जल की और मछली की गति की चाल परख कैसे होगी ?
आनेवाले समय को देखने वाले सहदेव के सहयोग के बिना
क्या कुछ मुमकिन हो सकेगा ?
एक नम्र नकुल था जिसके होने न होने से कुछ फर्क नहीं होता पर
चार से भले पांच ! या फिर छ ?
कुंता की आज्ञा से पहले ही उनके पुरुष सत्य ने तय कर लिए थे हिस्से !
किसी एक के हाथ तो नहीं आएगी
आओ पांचो मिलकर खा ले,
हो सके तो बाँटकर वरना तोड़मरोड़ कर !
किसके साथ कितनी राते, किसके साथ कितने दिन
सारे समय का हो चूका था गठजोड़ पहले ही !
कौन पहले कौन बाद में तय थे सारे क्रम के मोड़ !
यह विवशता थी लेकिन आखिर संसार की सबसे सुन्दर स्त्री के लिए
इतना समाधान तो जायज था उन्हें !
फिर अपने षड्यंत्रकारी सत्य को बहोत आसानी से छुपा लिया उन्होंने
" देखो माँ में क्या लाया हु ? " अर्जुन ने कहा
" जो लाए अपने भाइओ से मिलकर खाना " कह दिया माता कुंता ने !
हा हा हा हा हा हा हा !!
अपने षड्यंत्र के सत्य को नजाकत से मोड़कर
थोप दिया माता कुंता के होठ पर !
उनकी आग को मिल गई हवा
अब दोष सारा हो गया हवा का
और आग बन गई पूर्ण निर्दोष !
आखिर खाना ही तो थी मै उनके लिए शुरू से !
अर्जुन बनकर रह गए मातृ आज्ञा की प्रतिज्ञा
कृष्ण ने भी कह दिया इसे पूर्वजन्म के कर्म की शिक्षा !
माता कुंता जानती थी सत्य,
पांचो पांडव जानते थे सत्य,
कृष्ण भी जानते थे सत्य !
और में ?
मेरा सत्य ?
- मेहुल मंगुबहन, ०२ / ०६ / २०१४ अहमदाबाद
पूर्ण करो -- फिर ठीक से समझेंगे. कला किस्तों में कैसे पल्ले पड़ेगी ?
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