Thursday, October 6, 2011

मन में रावन, मन में राम !

चले एक दूजे का हाथ थाम !
मै जान न पाऊ आदमी आम !
मन में रावन, मन में राम !

किसको कोसु ? किस को चाहू ?
थे दोनु ग्यानी ,थे दोनु बाहू
फिर क्यों न रखा सीता का मान ?
मन में रावन, मन में राम !
मै जान न पाऊ आदमी आम !

दोष क्या था शम्बूक का आखिर ?
मारा बाली को किस के खातिर ?
कौन अहम में तुम थे गुल्तान ?
मन में रावन, मन में राम !
मै जान न पाऊ आदमी आम !

काहे ना सोंपा सीता को वापिस?
काहे ना मणि विभिष्ण की सिख ?
क्यों लंका को होने दिया राख ?
मन में रावन, मन में राम !
मै जान न पाऊ आदमी आम !

लड़ाई अधूरी छोड़ गए तुम,
हमको हिस्सों में तोड़ गए तुम,
फिर दे दिया उसको धरम का नाम !
मन में रावन, मन में राम !
मै जान न पाऊ आदमी आम !

मेहुल मकवाना , ६ ओक्टोबर २०११, अहमदाबाद

1 comment :