कुछ प्यादे थे, कुछ मोहरे महज,
और कुछ कुछ तो थे राजा-वजीर !
न बातो से उनकी म्हात हुआ मै,
न ही हरा पायी उनकी शमशीर !
न जाने कितने अन्ना आए
और कितने गए है अब तक !
कुछ ने धरम करम की बात की थी !
कुछ ने तो बड़ी बड़ी सौगात दी थी!
कोई अखंड राष्ट्र का सपना लाया था!
ज़हर भावनाओ को पिलाया था !
न जाने कितने अन्ना आए
और कितने गए है अब तक !
मेरी पीर के इलम का दावा किया कुछ ने !
निशां भी था न एसे जख्मो को ताजा किया कुछ ने !
कुछ कुछ ने तो आकर जुलम भी कई ढाए थे !
और कुछ अनजाने आकर लेने लगे बलाए थे !
न जाने कितने अन्ना आए
और कितने गए है अब तक !
वो भूल गए थे की शतरंज लोगोने भी खेली है ,
कभी आगे कभी पीछे , सब जानते ये पहेली है !
जानते है की क्रांति सच्ची सोच से पैदा होती है !
क्रांति का मतलब ना लालसलाम ना टोपी है !
न जाने कितने अन्ना आए
और कितने गए है अब तक !
न तुम गाँधी हो, न अंबेडकर , ना ही संत कबीर,
खुद को जकड़े हुये , तुम हो महज इक जंजीर,
गर कोई दर्शन हो सच्चा , साफ़ साफ़ बताओ ,
वरना वक़त है अभी भी, घर लौट जाओ !
न जाने कितने अन्ना आए
और कितने गए है अब तक !
- मेहुल मकवाना , १६ ओक्टूबर, २०११, अहमदाबाद
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