मेरे साल तेंतीस होने को आये लेकिन,
मैंने कभी कारतूस नहीं देखी है !
सिर्फ बचपन में फोड़े दीपावली के पटाखों की कसम,
आज तक कभी छुआ भी नहीं है बन्दुक को !
हा, घर में मटन-चिकन काटने इस्तेमाल होता,
थोडा सा बड़ा चाकू चलाने का महावरा है मुझे !
लेकिन मेने कभी तलवार नहीं उठाई है हाथ में !
में तो कब्बडी भी मुश्किल से खेल पानेवाला बंदा हु,
मल्ल युद्द्द या फिर कलैरीपट्टू की तो बात कहा ?
प्राचीन या आधुनिक कोई मार्शल आर्ट नहीं आती है मुझे !
में तो शश्त्र और शाष्त्र दोनों के ज्ञान से विमुख हु !
यह तक की लकड़ी काटने की कुल्हाड़ी भी पड़ोसी से मांगता हु !
ओर बड़ी मुश्किल से और कांपते हाथो से कर पाता हु दस्तखत !
लेकिन मेरे पास दो हाथ है जज साहब,
महनत से खुरदुरे बने ये दोनों हाथ मेरे अपने है !
पता नहीं क्यों लेकिन जब से मेने यह सुना है,
मेरे दोनों हाथो में आ रही है बहुत खुजली !
खुजला खुजला लाल कर दिए है मेने हाथ अपने !
और मेरे पास दो पैर है जज साहब !
बिना चप्पल के काँटों पे चल जाये और आंच भी न आये
एसे ये दोनों पैर मेरे अपने है जज साहब !
और जब से मेंने सुना है
की दंतेवाडा कि आदिवासी शिक्षक सोनी सोरी की योनि में
पुलिसियों ने पत्थर भरे थे,
पता नहीं क्यों में बार बार उछाल रहा हु अपने पैर हवा में !
और खिंच रहा हु सर के बाल अपने !
जैसे मेरे पास भी एक योनि और कुछ पैदा ही रहा हो उसे से !
हा, मेरा एक सर भी है जज साहब,
हर १५ अगस्त और २६ जनवरी के दिन,
बड़े गर्व और प्यार दुलार से तिरंगे को झुकनेवाला
यह सर मेरा अपना है जज साहब !
गाँधी के गुजरात से हु इसलिए
बचपन से ही शांति प्रिय सर है मेरा !
और सच कहू तो में चाहता भी हु की वो शांति प्रिय रहे !
लेकिन सिर्फ चाहने से क्या होता है ?
क्या छत्तिशगढ़ का हर आदिवासी,
पैदा होते हर बच्चे को नक्सली बनाना चाहता है ?
नहीं ना ? पर उसके चाहने से क्या होता है ?
में तो यह कहता हु की उसके ना चाहने से भी क्या होता है ?
में नहीं चाहता हु फिर भी ...
मेरा सर पृथ्वी की गति से भी ज्यादा जोर से घूम रहा है !
सर हो रहा है सरफिरा जज साहब,
इससे पहले की सर मेरा फट जाये बारूद बनकर,
इससे पहले की मेरा खुद का सर निगल ले हाथ पैर मेरे ,
इससे पहले की सोनी की योनि से निकले पत्थर लोहा बन जाए,
और ठोक दे लोकतंत्र के पिछवाड़े में कोई ओर किल बड़ी,
आप इस चक्रव्यूह को तोड़ दो जज साहब !
रोक लो आप इस......
इस बिखरते आदिवासी मोती को पिरो लो अपनी सभ्यता के धागे में !
वेसे मेरे साल तेंतीस होने को आये लेकिन,
मैंने कभी कारतूस नहीं देखी है !
कभी नहीं छुआ है बन्दुक को ,
नहीं चलाई है तलवार कभी !
और ना ही खुद में पाया है
कोई झुनून सरफरोशी का कभी !
- मेहुल मकवाना, अहमदाबाद, गुजरात
( सोनी सॉरी के केस के बारे में मेरी कोई विशेष जानकारी नहीं है ! जितना में जनता हु उतना आप भी इन्टरनेट के जरिये खुद जाने ले ऐसा में चाहुगा ! )
हा, मेरा एक सर भी है जज साहब,
ReplyDeleteहर १५ अगस्त और २६ जनवरी के दिन,
बड़े गर्व और प्यार दुलार से तिरंगे को झुकनेवाला
यह सर मेरा अपना है जज साहब !
kyab aat hai mehulbhai... maja padi... saras kavita thai chhe.
solid
ReplyDeletekavi chavda,
ReplyDeleteaa kavita nathi... buch chhe...
-dhiren
इससे पहले की सर मेरा फट जाये बारूद बनकर,इससे पहले की मेरा खुद का सर निगल ले हाथ पैर मेरे ,इससे पहले की सोनी की योनि से निकले पत्थर लोहा बन जाए,और ठोक दे लोकतंत्र के पिछवाड़े में कोई ओर किल बड़ी,आप इस चक्रव्यूह को तोड़ दो जज साहब !रोक लो आप इस......इस बिखरते आदिवासी मोती को पिरो लो अपनी सभ्यता के धागे में !.....
ReplyDeleteSalute.