जिनके जेहन में आग हो, वो सामने आए !
या फिर दिल में सुराग हो, वो सामने आए !
इस घडी मै सारी काइनात दे सकता हु उन्हें,
पास में इंसानी कागजाद हो, वो सामने आए !
इस बस्ती के अंधेरो से सूरज भीड़ न पायेगा,
जिनकी नजरे आफ़ताब हो, वो सामने आए !
शरीक ए जश्ने ए नाकामी भी जिगर की बात है,
जो भी बेदाग कामियाब हो, वो सामने आए !
कोने की कानाफूसी जैसी अब लड़ाई न होगी,
जिनका बुलंद इन्कलाब हो, वो सामने आए !
- मेहुल मकवाना, १९ / १२ / २०११, अहमदाबाद
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